क्या तुम्हारी कोई सीमा नहीं , क्या मेरा कोई वजूद नहीं
इस तरह से रूह को मेरी झिंझोड़ देना , क्या इंसानियत के खिलाफ नहीं
हमे भी सर उठाकर जीने का अधिकार हैं ,
क्या हमे आपसे इज्ज़त पाने का हक नहीं
तुम्हे क्या हक हैं मेरी इज्ज़त से खेलने का ,
क्या तुम्हारी मर्दानगी को कोई अबरू नहीं
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