उपरवाले ने दिया हैं इंसानों को इतनी बड़ी दुनिया , फिर क्यों हमारी दुनिया में दखलंदाजी करते हैं |
घर उनके बस जाये , इसलिए हमारे घरों को उजड़ते हैं |
कोई सहारा नहीं हमारा , हम हैं उपरवाले के रहमों कर्मो पर,
क्या यह हैं गुनाह , की हमारे घर ज़बरदस्ती घुसे इन लोगों को हम ऊपर पोहोच देते हैं |
यह वादियाँ जैसे इंसानों की हैं , कभी थी हमारी, हमेशा इंसान अपने फायदे के लिए हमे ही मार जाते हैं |
कुछ तो रहम करो अब तो इंसानों , छोड़ दो हमे अपने हाल पर,
अगर अच्छा न कर सकते हो , बुरा भी तो मत करो |
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